धन्वन्तरि वाटिका – औषधीय एवं हर्बल उद्यान
राजभवन में धन्वन्तरि वाटिका की स्थापना 24 फरवरी, 2001 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री विष्णुकांत शास्त्री द्वारा करी गई थी। उस वक्त राज्यपाल ने स्वयं वाटिका में कुछ आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का रोपण किया था। इस वाटिक का नाम भगवान धन्वन्तरि के नाम पर पड़ा था, जिन्हें अच्छे स्वास्थ्य तथा आयुर्वेद का देवता माना जाता है। राज्य में यह पहला आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का गार्डन है तथा मॉडल फार्मास्युटिकल गार्डन के रूप में भी इसे जाना जाता है।
इस औषधीय गार्डन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य जन समूह के बीच औषधीय पौधों की जानकारी बढ़ाना था और यह तभी संभव था जब राज्य के विभिन्न स्थानों पर इस प्रकार के गार्डन की स्थापना करी जाए तथा जन सामान्य को ऐसे औषधीय पौधों के लिए जागरुक किया जाए तथा इसके महत्व से अवगत कराया जाए, जिससे हमें हमारे पूर्वजों की बहुमूल्य विरासत का लाभ प्राप्त हो सके।
इस गार्डन में वर्तमान समय में 200 से अधिक पौधों की प्रजाति मौजूद है जिसमे रुद्राक्ष, कल्पवृक्ष, सिन्दूरी, कृष्णवट, सीता अशोक, हरद, भल्लाटक, कुपीलू, विजयसार, कुटज, चंदन (सफेद व लाल) लता पलाश, श्योनाक, गंभारी, हरजोड़, गुडमर, वरहीकंड, कचोर, शखोटक, वरुण, पुत्रजीव, वजृदन्ति, मिश्वाक, सर्पगंधा, परिभद्र, पारस पीपल, खदीर, गुग्गलु एवं अन्य प्रकार के औषधीय पौधें शामिल हैं। साथ ही, वाटिका में अन्य प्रकार के पौधे भी मौजूद हैं जिनमे बहेदा, आंवला, शिकाकाई, महानिम्ब, निर्गुणि, मौलश्री, वसा, विधारा, कालमेघ, अन्तमूल, गुंजा, नारियल, सुपारी, गिलोई, घृतकुमारी, शातावरी, अश्वगंधा, तुलसी एवं हल्दी शामिल हैं।
राजभवन में वार्षिक क्षेत्रीय सब्जी तथा फूल प्रदर्शनी में धन्वन्तरि वाटिका में उगाए गए पौधे तथा पेड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इसके अतिरिक्त राज्यपाल की इच्छानुसार धन्वन्तरि वाटिका को जन सामान्य के लिए फरवरी माह में 10-15 दिन के लिए खोला जाता है। धन्वन्तरि वाटिका की स्थापना के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से ‘आयुर्वेद और हमारा स्वास्थ्य’, ‘औषधि पौधे और स्वास्थ्य’ तथा ‘शतायु की ओर’ के 16 पत्रक प्रकाशित किये गये हैं, जिसमें आयुर्वेद को अपनाकर स्वस्थ्य रहने के उपायों का वर्णन किया गया है। साथ ही मधुमेह (diabetes mellitus), आमवात (arthritis), अर्श (piles), पीलिया (jaundice), अम्लपित्त (hyper acidity), मानसिक स्वास्थ्य (mental health), अग्निमांद्य, अजीर्ण एवं विबंध (digestive insufficiency, indigestion and constipation), अतिस्थूलता (obesity) आदि रोगों के कारण, बचाव एवं चिकित्सा का वर्णन अलग-अलग पत्रकों में किया गया है तथा इन रोगों में लाभकारी औषधीय पौधों की जानकारी भी दी गयी है। वहीं ‘शतायु की ओर’ के 17वें अंक को पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया गया है जिसमे ‘शिशु स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं आयुर्वेद’ विषय पर प्रकाश डाला गया है।
धन्वन्तरि वाटिका, राजभवन द्वारा प्रकाशित पत्रक को डाउनलोड करने हेतु यहां क्लिक करें।