अनुभव |
वह 1948-49 में कैम्ब्रिज इंडियन मजलिस के अध्यक्ष थे। श्री रोमेश भण्डारी ने 1950 में भारतीय विदेश सेवा (आई.एफ.एस.) ज्वाइन किया तथा उनकी प्रथम तैनाती न्यू यॉर्क के भारतीय कौंसुलेट में वाइस कौनसुल के तौर पर हुई| उन्होनें स्वर्गीय श्री वी.के. कृष्णा मेनन, जो बिना किसी प्रभार के मंत्री थे और बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में रक्षा मंत्री रहे, के निजी सचिव के रूप में अपनी सेवाएँ दीं| श्री भण्डारी ने श्री कृष्णा मेनन को कोरिया समस्या, स्वेज़ संकट, सुरक्षा परिषद में कश्मीर पर वाद-विवाद आदि बहुत से मामलों में सहायता प्रदान की| उन्होंने स्वर्गीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ बहुत निकटवर्ती रूप से कार्य किया | श्री भण्डारी ने दिल्ली में अनेकों वर्षों तक सेवाएँ दीं इस दौरान वे दो वर्ष के लिए भारतीय खनिज व धातु व्यापार निगम के साथ प्रतिनियुक्ति पर भी रहे| वह 1970-71 में मास्को में भारतीय दूतावास में मंत्री नियुक्त किए गए| उन्होंने 1971 से 1974 तक थाईलैंड में भारत के राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दीं तथा तत्कालीन एकेस (ECASE) वर्तमान मे एसकेप (ESCAP) के स्थायी प्रतिनिधि रहे| वह 1974 से 1976 तक इराक़ में भारत के राजदूत रहे | वह तब विदेश मंत्रालय में लौट आए व अपर सचिव के तौर पर फ़रवरी 1977 से जुलाई 1979 तक अपनी सेवाएं दीं| वह 1 अगस्त, 1979 को सचिव के पद पर प्रोन्नत हुए| श्री भण्डारी को 1 फ़रवरी, 1985 को विदेश सचिव नियुक्त किया गया तथा वे विदेश सेवा से 31 मार्च, 1986 को सेवानिवृत्त हुए| विदेश सेवा में, विदेश सचिव के उच्चतम पद तक पहुँचने के अतिरिक्त, श्री भण्डारी ने महात्मा गांधी के दूरदर्शी अहिंसक विश्व की संकल्पना को क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया| साथ ही पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा बनाई गई भारतीय विदेश नीति व दिशानिर्देशों का भी क्रियान्वयन किया| उन्होंने स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की भी बहुत से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों व बैठकों में सहायता की| वह श्री राजीव गांधी की विदेश नीति को क्रियान्वित करने वाले मुख्य व्यक्ति थे, विशेषकर जो भारत के पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करने को लेकर थीं | उन्होंने सार्क की स्थापना हेतु बहुत सी प्रारम्भिक बैठकों में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया| उन्होंने भारत का अनेकों अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र, गुट निरपेक्ष व कॉमन-वेल्थ से संबन्धित, में प्रतिनिधितत्व किया | श्री भण्डारी को विदेश कार्यालय में आर्थिक कूटनीति प्रारम्भ करने तथा अरब देशों से संबंध सुधारने व मजबूत करने का उत्तरदायित्व संभालने के लिए विशेष रूप से प्रणेता माना जाता है| विशेषकर पश्चिमी एशिया के विकास कार्यक्रमों में भारतीय कंपनियों के प्रतिभाग को उनकी ही देन कहा जाता है| उनकी अन्य उल्लेखनीय उपलब्धियों के बीच 80 के प्रारम्भिक दशक में तेल को सरकारी मूल्यों पर उपलब्ध करवाना है जबकि उस समय तेल का बड़ा संकट था तथा तेल के दाम बिना किसी पूर्वानुमान के बढ़ते चले जा रहे थे| उन्होंने इस संबंध में श्रीमती इंदिरा गांधी के विशेष प्रतिनिधि के तौर पर बहुत से तेल उत्पादक देशों की यात्रा की| उन्हें 1984 में दुबई से भारतीय एयरलाइंस विमान के अपहरणकर्ताओं को भारत वापस लाने का अनूठा गौरव प्राप्त है। यह सब इसलिए अधिक उल्लेखनीय है क्योंकि यह संयुक्त अरब अमीरात के साथ प्रत्यर्पण संधि के न होने के बावजूद किया गया था| सेवा निवृत्ति के बाद, श्री भण्डारी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (आई) के विदेशी मामलों के विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया| वह भारत की स्वतन्त्रता की चालीसवीं वर्षगांठ व पंडित जवाहर लाल नेहरू की जन्म शताब्दी समारोहों हेतु बनी क्रियान्वयन समिति के सदस्य भी थे| वह अखिल भारतीय ग्राम विकास परिषद के अध्यक्ष तथा कांग्रेस (आई) की अखिल भारतीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति परिषद के संरक्षक थे| श्री भण्डारी ने दिल्ली के उपराज्यपाल का प्रभार 4 अगस्त, 1988 को ग्रहण किया व समाजवादी जनता पार्टी के सत्ता में आने पर 13 दिसंबर, 1990 को त्यागपत्र दे दिया| अपने उपराज्यपाल के कार्यकाल के दौरान, वह जनता के लिए अपनी सरल उपलब्धता हेतु जाने जाते थे| जब उन्होनें उपराज्यपाल का पदभार ग्रहण किया तो एक दैनिक नीति के तौर पर वे दिल्ली के विभिन्न भागों में जाकर कौलेरा महामारी तथा गैस्ट्रोएंट्राइटिस बीमारी से पीड़ित लोगों से मिलते थे | इस महामारी को शीघ्रता व प्रभावी तरीके से रोका गया तथा जनता से दूर किया गया| श्री भण्डारी द्वारा दिल्ली को देश का सर्वश्रेष्ठ नगर बनाने पर विशेष बल दिया गया | उनकी सर्वोच्च वरीयता थी कि समूहों, झोपड़ पट्टियों व पुनर्वास कालोनियों में स्थितियों को सुधारा जाए तथा वहाँ स्वच्छता, यातायात, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, बिजली व पानी की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँ| उन्होंने दिल्ली के सौंदर्यीकरण के उद्देश्य से अनेकों योजनाएं प्रारम्भ कीं यथा ऐतिहासिक स्थल कुतुब मीनार, लाल क़िला, व पुराना क़िला का विद्युतीकरण | उपराज्यपाल के पद से त्यागपत्र देने के बाद, श्री भण्डारी ने दिल्लीवासियों की सेवाओं में अपना समय अर्पित किया| उन्होंने स्वर्गीय श्री राजीव गांधी को अंतर्राष्ट्रीय मामलों विशेषकर खाड़ी युद्ध में अपनी सहायता दी| वह फ़रवरी 1991 में श्री राजीव गांधी की मास्को, तेहरान, दुबई और शारजाह यात्रा में साथ रहे| श्री भण्डारी को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया और उन्होंने 15 अगस्त, 1993 को कार्यभार ग्रहण किया| इस पद पर रहते हुए उन्होनें बांग्लादेश के चकमा शरणार्थियों को बांग्लादेश के चटगांव हिल ट्रेक्ट्स में वापस भिजवाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करने में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया| चकमा शरणार्थी 1986 से त्रिपुरा के बहुत से शरणार्थी शिविरों में रह रहे थे| श्री भण्डारी 1 अगस्त, 1993 से 16 जून, 1995 तक त्रिपुरा के राज्यपाल रहे| वे 16 जून, 1995 से 19 जुलाई, 1996 तक गोआ के राज्यपाल के पद पर रहे| उन्होंने 19 जुलाई, 1996 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया | श्री भण्डारी की कला एवं संस्कृति में गहरी रूचि है तथा वे एक उत्साही गोल्फ़ खिलाड़ी हैं | |